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मुद्रा / थीक न्हात हन / सौरभ राय

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इस कवि की मत सुनो
आज सुबह मेरी कॉफ़ी में आँसू की एक बून्द पड़ी मिली थी

मेरी बातें कतई मत सुनो
सुनने की क्या ज़रूरत?
आज सुबह की कॉफ़ी में डूब गया ख़ून का एक कतरा
मुझे कोई शिकायत नहीं
मुझसे बस ये कॉफ़ी नहीं पी जाती
गलती मेरी ही है
कि जम गई है मेरे फेफड़े में बची साँसें

तुमने कहा – “मुझे तुम्हारी आँखों से रोने दो”
मेरे पास आँखें नहीं हैं
“चलने दो मुझे अपने दो पैरों से”
मेरे पाँव कट चुके हैं
मैंने अपने हाथ बढ़ाकर
तुम्हारे दुस्वप्नों का स्पर्श किया है
तुमने कहा – “मुझे मुक्ति नहीं चाहिए
अभी जीवन है शेष”
और मैं भटक रहा हूँ मुक्ति की तलाश में।

मेरे हाथ मेज़ पर साबुत हैं
सन्नाटा चुपचाप मुझे देख रहा है
समन्दर के आँसू किनारों को भिगो रहे हैं
पाँच ऊँचे पर्वतों ने मिलकर
धरती और आकाश को मिलने से
रोक रखा है।

दूर आकाशगंगा के पार
ब्रह्माण्ड के गहरे भेद खुल रहे हैं
मेरा दाहिना हाथ मेज़ पर स्थिर है
हमारे जागने के इन्तज़ार में
मेरा हाथ मेज़ पर स्थिर है
जैसे समन्दर के किनारे पड़ी है टूटी हुई एक सीप
जैसे गोली खाई लाश पड़ी है कहीं
जैसे ग्रह नक्षत्र गिर गए हैं अपनी जगहों से
समन्दर ने हिलना बन्द कर दिया है जैसे।

मेरा हाथ मेज़ पर स्थिर है
पाँच ऊँचे पर्वतों ने मिलकर
धरती और आकाश को मिलने से
रोक रखा है –
ब्रह्माण्ड के भेद खुल रहे हैं
तारे किसी अनजान भाषा में फुसफुसा रहे हैं
मेरा हाथ मेज़ पर स्थिर है
उस क्षण की प्रतीक्षा में
जब मैं एक कर दूँगा धरती आकाश

मेरा हाथ
इस अनन्त ब्रह्माण्ड में छोटा-सा यह हाथ
एक पर्वत है।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सौरभ राय