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मुनासिब तो नहीं है आप का ऐसे खफा होना / शिवशंकर मिश्र
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मुनासिब तो नहीं है आप का ऐसे खफा होना
नहीं हँसना अगर आया तो रोने से ही क्या होना
हजारों लोग हम जैसे सिसकते जो दिलों में ही
बुरा लगता नहीं है अब हमें इतना बुरा होना
अजब लाचार हैं हम, है अजब लाचारियाँ अपनी
किसी भी दर्द का होना नहीं मतलब दवा होना
सितारे रात भर रोते रहे अपने मुकद्दर पर
सरासर धाँधली है आसमाँ में चाँद का होना
हमें तकलीफ आखिर क्या, हमें नाराजगी क्यों हो
रहे छोटे हमेशा जो उन्हें क्यों हो बड़ा होना
नहीं पर्दा है उन का या हमारा बीच में कोई
अलग वे हों को क्योंकर हों, हमें क्यों हो जुदा होना
किसी का प्यार भी ईमान पर बन आए जो कल को
कहेंगे हम यही ‘मिशरा’, बुरा है आश्ना होना