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मुनिया की मासूम आंखें / कमलेश्वर साहू
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मुनिया रोज ही देखती है
गौर से
दादी के चेहरे को
झांकती है रोज ही
दादी की
निश्तेज आंखों में
हर सुबह रौशनी
यहीं से फूटती है
मुनिया नहीं कहती
कहती हैं
मुनिया की मासूम आंखें !