मुन्ना के मुक्तक-2 / मुन्ना पाण्डेय 'बनारसी'
मोहब्बत ठान ली लेकिन हमें करना नहीं आया।
किसी को घाव देकर, घाव को भरना नहीं आया।
दिलों के टूटने का तो फ़क़त इतना फ़साना है-
उन्हें जीना नहीं आया हमें मरना नहीं आया।
मेरी गलती पर हँस देती पर मेरे दुख में रोती है।
अपना खाना हमको देकर जो ख़ुद ही भूखी सोती है।
नाते जग में अगणित होते लेकिन वह ममता की मूरत-
जो अपना सब दुख हर लेती वह तो केवल माँ होती है।
बात बस इतनी-सी कोई कह दे उनके कान में।
दर्द को भी मोड़ दे-दे बाँसुरी की तान में।
ज़िन्दगी है खूबसूरत कतरा-कतरा जी इसे-
हर दवा-दारू छुपी है आप की मुस्कान में।
मुकम्मल कुछ नहीं मिलता, किसी को इस ज़माने में।
उमर कट जायगी यूँ ही, तेरी आँसू बहाने में।
हवस तो शाहजादों की, भी पूरी हो नहीं सकती-
सफर आसान हो जाता, ज़रा-सा मुस्कुराने में।
बुरा नहीं है ख़्वाब देखना एवरेस्ट की चोटी का।
लेकिन यहाँ असंख्य पड़े हैं जिनका मुद्दा रोटी का।
सच है सपने बड़े देखना उन्नति का सोपान है ये-
लेकिन इज़्ज़त रहे सलामत रक्खो ध्यान लँगोटी का।
रुदन नहीं होगा तो फिर कविता का गान नहीं होगा।
भाव बिना कविताओं का उर पर संधान नहीं होगा।
कवि के मन को नियम कायदे में मत बाँधो ऐ यारो-
वरना कविता तो होगी पर भीतर प्राण नहीं होगा।
कई मिलते हैं बेगाने तो अपने छूट जाते हैं।
घड़े मिट्टी के होते हैं जो अक्सर फूट जाते हैं।
तजुर्बा ज़िन्दगी का नाम है कुछ सीख ले मुन्ना-
अकड़ कर जो भी चलते हैं वह अक्सर टूट जाते हैं।