भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुन्ना सीख रहा है / चंद्रसेन विराट

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुन्ना चलना सीख रहा है।

छोटे-छोटे पैर सुहाने।
चलने से अब तक अनजाने।
रहे रेंगते घुटनों पर ही,
धीरे-धीरे हुए सयाने।
मुन्ना अब गाड़ी के बल पर,
कदम बदलना सीख रहा है।

मात-पिता ने देखा था कल,
मुन्ना खड़ा हुआ अपने बल।
डग-मग हुआ, हाथ फैलाकर,
थाम लिया था माँ का आँचल।
लाँघ देहरी अब आँगन में,
रोज निकलना सीख रहा है।

मुन्ने को चलना क्या आया,
घर-भर में तूफान उठाया।
खोली अलमारी, सब चीजें,
तोड़-तोड़कर किया सफाया।
शाम हुई तो पापा के संग,
तेज टहलना सीख रहा है।