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मुन्नू जी की मोटर / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
मुन्नू जी की प्यारी मोटर,
सरपट भागे इधर-उधर।
नीले, पीले रंगों वाली,
मोटर है यह खूब निराली,
चाल हवा-सी लहराती है
हार्न बजा आती-जाती है।
हाथ साधकर इसे चलाओ,
नहीं किसी से होगी टक्कर।
ऐसे इसको ड्राइव करो जी,
दो से ज्यादा चढ़ो जी,
स्पीड नहीं कुछ अधिक बढ़ाओ
जल्दी ही यह ब्रेक लगाओ।
मुन्नू जी सब समझाते हैं
जम बैठे खिड़की के अंदर।
जब से है यह मोटर आई
मुन्नू जी ने धाक जमाई,
बस्ती के बच्चों की टोली
बोल रही बस, उनकी बोली।
मुन्नू जी सारे-सारे दिन,
सैर कराते उनको जमकर।