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मुफ़लिसों की कहां बाजार से गाड़ी निकली / जियाउर रहमान जाफरी
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मुफ़लिसों की कहाँ बाज़ार से गाड़ी निकली
जब सड़क पर कभी रफ्तार से गाड़ी निकली
झोपड़ी आ गई रस्ते में हमारी जब से
फिर उसी घर की ही दीवार से गाड़ी निकली
आज कुछ मजमे ने कुछ बात न मानी उनकी
तेज रफ्तार में इंकार से गाड़ी निकली
वो अपाहिज था भटकता रहा रिक्शे के लिए
थे बड़े लोग तो सरकार से गाड़ी निकली
लॉटरी सब के मुकद्दर में कहाँ मिलती है
लोग कुछ कहते हैं अखबार से गाड़ी निकली
दूर तक दिखता गया शीशे में झिलमिल कोई
हाँ मगर शोर से झंकार से गाड़ी निकली