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मुमकिन ही नहीं की किनारा भी करेगा / हिलाल फ़रीद
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मुमकिन ही नहीं की किनारा भी करेगा
आशिक़ है तो फिर इश्क़ दूबारा भी करेगा
परदेस में आया हूँ तो कुछ मैं भी करूँगा
कुछ काम तेरे तख़्त का तारा भी करेगा
अंदाज़ यही है यही एतवार हैं उस के
बैठेगा बहुत दूर इशारा भी करेगा
रोएगा कभी ख़ूब कभी ख़ूब हँसेगा
क्या और तेरे तीर का मारा भी करेगा
जब वक़्त पड़ा था तो जो कुछ हम ने किया था
समझे थे वही यार हमारा भी करेगा
शेरों में ‘हिलाल’ आप को कहना है फ़क़त सच
सच बात मगर कोई गवारा भी करेगा