मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - २०
वह कितनी सौभाग्यवती है अभिरामा वामा मधुकर
कुलानन्दिनी कीर्तिसुता की अंश स्वरुपा वह निर्झर
उसकी पद नख द्युति से कर ले अपना अंतर तिमिर हरण
टेर रहा है दुरितदारिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।96।।
रो ले जी भर कर रो ले रे अश्रु अमोलक धन मधुकर
प्रियतम का पद कमल पखारें तेरे स्नेह नयन निर्झर
अभिनन्दन कर अश्रु अर्घ्य से लोक लाज कर आज विदा
टेर रहा है सलिलार्द्रलोचना मुरली तेरा मुरलीधर।।97।।
कृपण न बन अंतर की पीड़ा दृग में भरने दे मधुकर
छिपा न मूढ़ टपक जाने दे नयनों का व्याकुल निर्झर
ये संवादी अश्रु तुम्हारी सब कह देंगे व्यथा कथा
टेर रहा है पलकाश्रयिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।98।।
वृथा कटे जा रहे दिवस तू फूट फूट कर रो मधुकर
बिना रुदन के कभी उमड़ कर प्रवहित कहाँ प्राण निर्झर
ऋणी बना सकती प्रियतम को तेरी लघु आँसू कणिका
टेर रहा है रागवर्धिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।99।।
जो होगा होने दे पहले उससे भेंट ललक मधुकर
सच्चा रति से निर्मल कर ले अंतर का पंकिल निर्झर
समय कहाँ रे कब चेतेगा कब से देख रहा है पथ
टेर रहा है सम्प्रबोधिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।100।।