मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - ३८
सुन अनजान प्राणतट का मोहाकुल आवाहन मधुकर
रस सागर की तड़प भरी सब चाहें ममतायें निर्झर
स्मरण कराता जन्म जन्म के लिये दिये अनगिन चुम्बन
टेर रहा है प्रीतिमादिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।186।।
मृदु गलबहियाँ दे बन जाता हार तुम्हारा वह मधुकर
सब अनखिला खिला देता है उसका मधु दुलार निर्झर
उसकी बाँहों की डाली में रसमय झूला झूल नवल
टेर रहा ऋतुराजनियोगा मुरली तेरा मुरलीधर।।187।।
उसका ही विहार वृन्दावन कर अपना अंतर मधुकर
नयनों में प्राणेश मिलन का भर ले सजल सरस निर्झर
तू क्या जाने निपट अनाड़ी कब रच दे कैसी लीला
टेर रहा है चित्तचोरिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।188।।
रख स्मृति वही प्राणवल्लभ सिन्दूर रेख तेरी मधुकर
वह भावना चित्रलेखा वह कुंकुम भाल तिलक निर्झर
दूर नहीं प्रति श्वांस श्वांस में वह मंगलमय मनमोहन
टेर रहा जीवनश्रृंगारा मुरली तेरा मुरलीधर।।189।।
भग्न पाल अनभिज्ञ खेवैया जीवन जीर्ण तरी मधुकर
क्षुभित जलधि प्रतिकूल प्रभंजन फिर भी चलता चल निर्झर
उसका है तो फिर क्या चिन्ता आयेगा खेनेवाला
टेर रहा है संकटहरणी मुरली तेरा मुरलीधर।।190।।