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मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - ४८

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गाने आया जो अनगाया गीत अभी तक वह मधुकर
वीण खोलते कसते ही सब बासर बीत गये निर्झर
सही समय आया न सज सके उचित शब्दसंभार कभी
टेर रहा समयानुकूलिनी मुरली तेरा मुरलीधर।२३६।

मारुत रोता रहा खिले पर गहगह फूल नहीं मधुकर
इच्छाओं की पीडा का ही था उरभार गहन निर्झर
गृह समीपवर्ती पथ से ही गया निकल मंथर प्रियतम
टेर रहा अमन्दपदध्वनिता मुरली तेरा मुरलीधर।२३७।

देख न सका बदन उसका स्वर सुन न सका उसका मधुकर
भवन पंथ पर मन्द चरण ध्वनि ही सुन सके श्रवण निर्झर
सेज बिछाती बीती रजनी बुला न सके सदन मे तुम
टेर रहा है मिलनमानसी मुरली तेरा मुरलीधर।२३८।

अमित वासनायें है तेरी तेरे अमित रुदन मधुकर
बार बार वह कृपा सिन्धु करता न उन्हें स्वीकृत निर्झर
दे यह शुचि उपहार बनाता अपने लायक नित्य तुम्हें
टेर रहा है स्वजनाश्रयिणी मुरली तेरा मुरलीधर।२३९।

यह दिन दिया दिया यह द्युति दी ऐसी शुभकाया मधुकर
पर जब तुच्छ वासनाओं से हुआ मुकुर मैला निर्झर
वह ओझल हो गया बनाता पूर्ण स्वीकरण योग्य तुम्हें
टेर रहा निजदिशादशिर्नी मुरली तेरा मुरलीधर।२४०।