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मुरली बाज उठी अन घाताँ / बुल्ले शाह
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मुरली बाज उठी अन घाताँ,
मैनूँ भुल्ल गइआँ सभ बाताँ।
लग गए अनहद बाण न्यरे,
छुट्ट गए दुनिआँ दे कूड़ पसारे,
असीं मुख देखण दे वणजारे,
दूइआँ भुल्ल गइआँ सभ बाताँ।
मुरली बाज उठी अन घाताँ।
असाँ हूण चंचल मिरग फहाया,
ओसे मैनूँ बन्न बहाया,
हरफ दुगाना ओसे पढ़ाया,
रह जइआँ दो चार रूकाताँ<ref>रुकावटें</ref>।
मुरली बाज उठी अन घाताँ।
बुल्ला शाह मैं तद बिरलाई,
जद दी मुरली काहन बजाई,
बौरी होई ते तैं वल्ल धाई,
कहो जी कितवल्ल दसत बराताँ।
मुरली बाज उठी अन घाताँ।
शब्दार्थ
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