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मुर्गा / बालस्वरूप राही
Kavita Kosh से
एक रोज मुर्गा जी जा कर
कहीं-कहीं आप कुछ भाँग
सोचा-चाहे कुछ हो जाए,
आज नहीं देंगे हम बाँग।
आज न बोलेंगे कुकड़ू-कून,
देखें होगी कैसे भोर,
किन्तु नशा उतरा तो देखा-
धूप खिली थी चारों ओर।