भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुर्गे की लड़ाई / राज हीरामन
Kavita Kosh से
अंग्रेज़ उपनिवेशों ने
हम भारतीय अप्रवासियों को
कभी विभाजित नहीं किया था !
वे तो मुर्गे की लड़ाई के बहाने,
हमें एकत्र करना चाहते थे !
अंग्रेज़ तो चले गए !
मुर्गे अब तो फ्रोजन आते हैं ।
परंतु वे अखाड़े,
आज भी भरे पड़े हैं।
जहाँ भिड़ रहे हैं हम अप्रवासी !