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मुर्दे जाग रहे हैं कब्रों और मसानों में / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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मुर्दे जाग रहे हैं क़ब्रों और मसानों में।
कैसे भूख मिटेगी हलचल है शैतानों में।
धीरे-धीरे समझ गए आख़िर सारे मुर्गे,
दोनों में है ज़हर हरे केसरिया दानों में।
सब चिड़ियों ने मिलजुल कर कुछ ऐसा जाल बुना,
आखेटक आकर फँसते अब रोज़ मचानों में।
हाथी, हसिया, पंजा, झाड़ू, कमल सभी एक से,
चुन भर लेने से ख़ुद को मत गिनो सयानों में।
घूम रहे आतंकी महानगर की सड़कों पर,
खोज रहा कानून वनों में और मकानों में।