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मुर्दे / अरविन्द भारती
Kavita Kosh से
बारूद की गंध
कारतूस के खोखे
टूटी चप्पलें
टूटे चूल्हे
सुलगते घर
चूड़ियों के टुकड़े
सिसकती आहें
मंडराते गिद्ध
उल्लुओं की बैठक
गीदड़ों की फ़ौज
मजबूर पिता
बेबस माँ
लाचार प्रशासन
पेड़ पर लटकती
लाश मोहब्बत की
सभ्यता, संस्कृति का
ढ़ोल पीटते
नाचते गाते मुर्दे।