भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुलाक़ात / सुनील कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कितनी बारिशों को
पिया हमने,
कितने बसंतों को
जिया हमने

कभी पिघलती ग्रीष्म में
खुद को तपाया
शिशिर को
उम्मीदों से गर्माया

पतझड़ में भी
स्वयं पीड़ा-पतिकाओं को गिराया
हर बार कुछ नए
सिलसिलों को उगाया

कभी खुद को खुद से
न मिलाया हमने
इस सफ़र में बाकी है
बस एक मुलाकात॥