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मुलाकातें हमारी, तिश्नगी से / वीनस केसरी
Kavita Kosh से
मुलाकातें हमारी, तिश्नगी से
किसी दिन मर न जाएँ हम खुशी से
महब्बत यूँ मुझे है बतकही से
निभाए जा रहा हूँ खामुशी से
उन्हें कुछ काम शायद आ पड़ा है
तभी मिलते हैं मुझसे खुशदिली से
उजाला बांटने वालों के सदके
हमारी निभ रही है तीरगी से
ये कैसी बेखुदी है जिसमे मुझको
मिलाया जा रहा हैं अब मुझी से
उतारो भी मसीहाई का चोला
हँसा बोला करो हर आदमी से
खबर से जी नहीं भरता हमारा
मजा आता है केवल सनसनी से
अना के वास्ते खुद से लड़ा मैं
तअल्लुक तोड़ बैठा हूँ सभी से
ये बेदारी, ये बेचैनी का आलम
मैं आजिज आ गया हूँ शाइरी से