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मुलाकात के बाद / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
जब मैं चीजों को समझता हूं
वे कभी सुव्यवस्थित दिखाई नहीं देतीं
सभी में रुखड़ापन उजागर होने लगता है
एक दिन सब कुछ सही हो जायेगा,
उम्मीद छोड़ देता हूं इसकी।
मैं अब किसी से भी मिलकर
उतनी संतुष्टि से विदा नहीं हो सकता
कुछ न कुछ छूट ही जाएगा कहना
एक बार में खेत, खोद नहीं डालते हल
हर बीज को खुली मिट्टी और हवा चाहिए
मैं इसी तरह से खुलता हूं
फिर ढक लेता हूं अपने आपको
इस तरह से धीरे-धीरे वृहद हो जाता हूं मैं
मैं यहां मौजूद हूं और सबको प्यार बांटता हूं
इस तरह से मेरा हृदय हमेशा सक्रिय रहता है
हमारी इस मुलाकात के बाद थोड़े से हम स्थिर हुए
थोड़े से हम बदल गए।