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मुश्किलों की आंच में ताप कर पयम्बर बन गए / रमेश 'कँवल'

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मुश्किलों की आंच में तप कर पयम्बर1 बन गये
दर्दो-ग़म नदियों का पीकर हम समुंदर बन गये

दाग़े-लाला2 की तरह थे जब तलक सिमटे रहे
जब बिखरकर फैले हमबू-ए-गुलेतर3 बन गये

यूं तो लिपटे हैं ग़मों के नाग हमसे दुख भरे
हम मगर ख़ुश हैं कि चंदन का मुक़द्दर4 बन गये

आंख से ओझल हुये तो बिक गये जन्मों के मीत
प्यार के वादे थे जितने मोम के घर बन गये

मुझको तो बेचैन कर डाला समुंदर की तरह
खुद मगर मजबूरी-ए-साहिल का मंज़र5 बन गये

किस तरह होता फ़ना6 आखिर वजूदे-कहकशां7
टूटकर बिखरे भी हम तो माहो-अख्तर8 बन गये

सारी नज़रों का "कंवल" मरक़ज़9 था अमृत का कलश
हम घड़ा विष का निगलकर भोले शंकर बन गये


1. र्इश्वरावतार 2. फूलकाधब्बा 3. निरंतरसुगंध 4. भाग्य 5. दृश्य
6. विनाश 7. आकाशगंगाकाअस्तित्व 8. चांदसितारा 9. केन्द्र।