मुश्किलों को घर बुलाना चाहिए / सिया सचदेव
मुश्किलों को घर बुलाना चाहिए
सब्र अपना आज़माना चाहिए
मेरे हिस्से में ही आये ख़ार क्यों
ये शिकायत भूल जाना चाहिए
बोझ दिल का होगा कुछ हल्का तभी
हाल ए दिल उनको सुनाना चाहिए
वो जो पहलू से उट्ठे तो यूं लगा
उनको जाने का बहाना चाहिए
लुट गए दिल के सभी अरमान अब
दर्द का मुझको खज़ाना चाहिए
दर्द तो मैंने कमाया हैं बहुत
अब ख़ुशी का इक बहाना चाहिए
फिर अँधेरे दिल से होंगे दूर सब
दीप रोशन इक जलाना चाहिए
रौशनी की इक किरन चमके ज़रा
कुछ तो जीने का बहाना चाहिए
पड़ गयी माथे पे सूरज की किरन
नींद से अब जाग जाना चाहिए
इस जहाँ से भर गया दिल मेरा
अब नया इक आशियाना चाहिए
कौन समझेगा यहाँ दिल की ज़बां
हाल ए दिल सबसे छुपाना चाहिए
मुख़्तसर सी जिंदगी है ए सिया
प्यार से मिलना मिलाना चाहिए