भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुश्किल तो न था ऐसा भी अफ़्लाक से रिश्ता / शहबाज़ ख्वाज़ा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुश्किल तो न था ऐसा भी अफ़्लाक से रिश्ता
तोड़ा ही नहीं हम ने मगर ख़ाक से रिश्ता

हर सुब्ह की क़िस्मत कहाँ रुख़्सार की लाली
हर शब का कहाँ दीदा-ए-नमनाक से रिश्ता

बख़्शी है तुझे जिस ने ख़द-ओ-ख़ाल की दौलत
है मेरे बदन का भी इसी चाक से रिश्ता

छोड़ा है किसे फ़िक्र के दरिया ने सलामत
रास आया किसे मौजा-ए-इदराक से रिश्ता

‘शहबाज़’ मैं धरती से हूँ मंसूब कुछ ऐसे
जैसे कि किसी जिस्म का पोशाक से रिश्ता