भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुश्किल दौर / मनोज चौहान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

{{KKRachna | रचनाकार=

जब भी लगे कि,
नहीं गुजर रहा है,
मुश्किल दौर,
जीवन का ऐ दोस्त,
तो हौसला ना हारना तू कभी ।

क्योंकि है दौर कौन सा,
जो नहीं गुजरा आज तक,
गुजर गया जो दौर कल था,
और गुजर जायेगा वो भी,
जो दौर आज है ।

याद करना तू अतीत को,
जब खिन्न हो गए थे तुम,
जीवन की चुनौतियां ,
पहाड. लगती थी तुम्हें,
आत्मंथित कर खुद को,
तुमने जुटाया था आत्मविश्वास ,
फिर तुम पार पा गये थे उनसे ।

तुम चलते थे रोज,
गिरकर संभलते भी थे,
लहूलुहान होते पांव भी,
नहीं डिगा पाये थे ,
तुम्हारे इरादों को ।

हर पल, हर लम्हा,
लक्ष्य पर ही नजर,
गढ़ाए रखते थे तुम ।

खुली आखों से देखे हुए,
वो सपने,
जो जगा देते थे,
अक्सर तुम्हे नींद से,
उन सपनों को भी,
हकीकत बनाया था तुमने ।

वो तुम ही हो दोस्त,
जो गुजरे थे उस दौर से,
और वो भी तुम ही हो,
जो गुजर जाओगे इस दौर से भी ।