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मुश्किल भेलै जीना / मुकेश कुमार यादव
Kavita Kosh से
मुश्किल भेलै जीना।
टप-टप टपकै पसीना।
भोर के वेला।
धूप के मेला।
रंग-रंग के करै छै खेला।
जेठ-बैशाख महीना।
मुश्किल भेलै जीना।
कुछ नञ् बुझाय छै।
कुछ नञ् सोहाय छै।
दाल-भात मनो नञ् भाय छै।
ठंडा-पानी पीना।
मुश्किल भेलै जीना।
हवा के झोका।
करै छै, धोखा।
बंद दरवाजा, खुला झरोखा।
सुख-चैन अब छीना।
मुश्किल भेलै जीना।
हंसी के गोरी।
गांव के छोरी।
करी दिल के चोरी।
भेलै कमसीन, भोली-हसीना
मुश्किल भेलै जीना।