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मुश्किल समय / अनिता मंडा
Kavita Kosh से
गोद में उठाया हुआ बच्चा
माँ के माथे से बिंदी उतारकर
सजाता है अपने माथे पर
भरता है किलकारी
चुपके से खोलकर
ड्रेसिंग टेबल की दराज
दोनों हाथों में भर-भर पहनता है चूड़ियाँ
माँ की चुन्नी आँखों पर डाल
खेली जाती है छुप्पम- छुपाई
रो देता है दिल खोलकर
चोट लगने पर
सबसे जताता है प्यार बिंदास
कोई पर्देदारी नहीं
नादान बचपन
बेख़बर है हर सत्ता से
दीवारें उठ रही हैं हर कहीं
हर तरफ़
बाज़ार इसे भी बाँट ही देगा
गुलाबी और नीले में
समाज के बनाए विशेषण पहन
खो जाएगी इसकी सम्पूर्णता
कितना कठिन है इस समय
खिलते फूलों को सहेजना