मुश्किल से ये बच्चे पाले हैं साहब / सूरज राय 'सूरज'
मुश्किल से ये बच्चे पाले हैं साहब।
हमने अक्सर लफ़्ज़ उबाले हैं साहब॥
अपने घर की किस्मत, झाड़ू की मर्ज़ी
हम तो बस मकड़ी के जाले हैं साहब॥
रातें भी देखीं हैं हमने रिश्ते भी
रात से ज़्यादा रिश्ते काले हैं साहब॥
विधवा माँ और छोटे-छोटे भाई-बहन
ये मेरे हाथों पर ताले हैं साहब॥
इनकी तो चिंता तक करना ठीक नहीं
छोड़ो ये मज़लूम के नाले हैं साहब॥
एक दरोगा इक पटवारी, दो बेटे
अब सारे सुख बैठे-ठाले हैं साहब॥
क्या बोलें फ़ि तरत ने बना दिया जोकर
जीवन में हंसने के लाले हैं साहब॥
रोज़ाना जो थाली में खाना छोडें
समझो छीने गये निवाले हैं साहब॥
हम मुफ़लिस की पुश्तैनी दौलत ईमां
बस अपनी जागीर सम्हाले हैं साहब॥
आपने भी तो ग़ज़ल समझ के वाह कहा
कुछ आँसू लफ़्ज़ों में ढाले हैं साहब॥
अब तो सर से हाथ हटा लीजै अपना
हम सचमुच में टूटने वाले हैं साहब॥
परवानों को पता है लौ की सच्चाई
पर ये मन्ज़िल के मतवाले हैं साहब॥
बच्चों को बहलाना कोई खेल नहीं
कुछ कंकर गुल्लक में डाले हैं साहब॥
टू जी या बोफोर्स या चारा या व्यापम
कैसे-कैसे खेल निकाले हैं साहब॥
सच्चाई ने दर्शक बना दिया, वरना
हमने सिक्के ख़ूब उछाले हैं साहब॥
टोपी तिलक हथौड़ा खादी या खाकी
सबके अपने-अपने पाले हैं साहब॥
अंधियारों का दर्द उजाले से पूछो
हमने "सूरज"-चाँद खंगाले हैं साहब॥