भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुसकराती मौत जैसी ज़िंदगी का शहर है / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुसकराती मौत जैसी ज़िन्दगी का शहर है
ये हसीं जलवों की नंगी सादगी का शहर है,

दर्द के क़िस्सों की ख़ातिर वक़्त किसके पास है
ये मेरी आवाज़ की आवारग़ी का शहर है,

जश्न है हर क़त्ल बिकती है अना बचपन हया
ये शहर ख़ामोशियों की बानगी का शहर है,

चप्पलें फटकारते ग़ालिब यहाँ घूमा किए
मैक़दों में छटपटाती तिश्नगी का शहर है,

फिर कोई लाचार सपना ढूँढ़ता है घर यहाँ
ये ख़ुदा की बेबसी, बेचारग़ी का शहर है,

रोशनी मिलती है क़िश्तों में, किराए पर मकाँ
झिलमिलाती जगमगाती, तीरगी का शहर है,

दिल लगा लो बस यहाँ पर बस ना जाना तुम कहीं
दोस्त ये दिल्ली है, ज़ालिम दिल्लगी का शहर है।