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मुसलसल झिलमिलाता है के अब होने ही वाला है / मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
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मुसलसल झिलमिलाता है के अब होने ही वाला है
उस आइने पे चहेरे का ग़ज़ब होने ही वाला है
हर एक तारा है तीर अंदाज़ हर जुगनू है नैज़ाबाज़
पलक झपके न कोई क़त्ले शब् होने ही वाला है
यहाँ हेरान होने के लिये कुछ भी नहीं बाक़ी
अजब पर किस को हैरत होगी जब होने ही वाला है
कई दिन से मर्ज़ लायक़ है उस को सरबुलंदी का
वो सूली पे चढ़ाने को तलब होने ही वाला है
जो होना चाहिये था वो तौ अब होने नहीं वाला
नहीं होना था जो सब कुछ वो सब होने ही वाला है
सुना जाता है वो बच्चा जो कल तक भोला भला था
अदब पढ़ने लगा है बेअदब होने ही वाला है
तौ फिर हफ़ज़े तक़दुम में ही कुछ अशआर हो जाएँ
मुज़फ्फर से खफा वो बे सबब होने ही वाला है