मुसलसल बदतमीज़ी / राम सेंगर
मुसलसल बदतमीज़ी
जब कोई करता चला आए
तो बस, यह मौज जागे है
कि उसकी कनपटी पर दूँ ।
बड़े आए
दिखाने आइना
हमको कुढ़े पामर ।
कहन का है
शऊर न ढब
फटा - सा रेंक ढोंगिल स्वर ।
हमारी टाँग,
बत्तीसी बचाकर खींचना बच्चे
जो चूके, भूल जाओगे,
कुकुड़कुड़ कूँ, कुकुड़कुड़ कूँ ।
जहाँ जब
जिस तरह आओ
निपटने की अदा लेकर ।
करेंगे
शान से रुख़सत
नई बैसाखियाँ देकर ।
पकड़ से दूर
ठेंगे को न रक्खा, तो बुरा होगा
जो टूटा तो निकल जाएगी
सारी हेकड़ी हुम हूँ ।