मुसल्मान / शब्द प्रकाश / धरनीदास
धरनी कही पुकारिके, साँच सुनो सब कोय।
दर्द-मन्द दिल बन्द जो, मुसल्मान है सोय॥1॥
धरनी एकै राम है, सोई खसम खोदाय।
जो दूजा करि जानि है, सो दोजख में जाय॥2॥
दुनिा करत जोरावरी, कासाँ करिये जीद।
धरनी ऐसो बे-खबर, बकरी सो बकरीद॥3॥
धरनी मन मोलना करो, अन्दर बनी मसीद।
तहाँ नमाज गुजारिये, जहाँ न रोजा ईद॥4॥
धरनी हिन्दू तुरुकते, पुरुष अकेला राम।
अपनो घर सूझै नहीं, झगरि मरैबेकाम॥5॥
धरनी चौदह तबकपर, एक अजब मसजीद।
खासे बन्दन सुख कियो, शोक करै ब-रजीद॥6॥
धरनी सैयद ते भले, सदा सनेही भूल।
बहुत नियामत छोड़िके, बिगरा करैं कबूल॥7॥
धरनी शेख सोइ भले, खुद में लखैं खोदाय।
खून करैं नहिं काहुको, ज्यों गदही त्यों गाय॥8॥
धरनी मोगल सो भलो, करै पांच को बन्द।
मन मों आशा तोरिके, आपु रहै निर्द्वन्द॥9॥
धरनी भले पठान ते, सांच पकरि दिल मांही।
टेक निबाहें आपनो, कैसहुँ छोडें नांहि॥10॥
धरनी जोलहा ते भले, काया-करिगह पैठि।
पुरिया प्रेम सुधारिके, रहैं निरन्तर बैठि॥11॥
धरनी धुनिया ते भले, धुनैं आपनी देह।
गाला ज्ञान सुधारि लें, मकठा रहै न खेह॥12॥
धरनि कसाई ते भले, मिथ्या जाय पछारि।
पकरैं छूरी ज्ञानकी, जबह करैं परचारि॥13॥
कलावन्त तेई भले, करैं कलाको अन्त।
गाय बजाय रिमघाय के, जाय मिलैं निज अन्त॥14॥
धरनी भठियारे भले, आपु परि सुख देहिँ।
अपने करहिं अधीनता, उनको कछु नहिं लेहिं॥15॥
दर्द-मन्द सब जीवते, पकड़े एक-पनाह।
धरनी ताको जानिये, खुद है खैर सलाह॥16॥