मुसहरी : आरक्षण मेरे लिए नहीं है / कर्मानंद आर्य
पटना:
गोलंबरों वाले इस सभ्य शहर में
ठीक सड़क के बीचो बीच
मैंने गाड़ दिया है एक पत्थर
पत्थर बनेगा पेड़
पेड़ों से फूटेंगी डालियाँ
अनगिनत फूल बरसेंगे
झोपड़ी के गौने पर
खुश हो जायेगी जवान हवेली
बच्चे :
मुसहर टोली का एक फटी चड्ढी वाला लड़का
अलसुबह रोटियों का कूड़ा उठाएगा
पानी पीकर स्कूल चला जाएगा
“देश का भविष्य” पीले चावल की तलाश में
सर्वशिक्षा अभियान की पतंगे उड़ायेगा
खेल कूद कर घर वापस आ जायेगा
बेटियां :
एक मुरझाई हवा गुजरेगी उनके आस पास
तेज मोबाइल की अश्लील धुन और
शराब के भभके से अंट जाएगा मोहल्ला
कच्ची लड़कियों की देह उघारकर पूछेगा दरोगा
बिना दीवारों के घर पर कैसे चढ़ता है नशा
ठीक उसी शाम बिना दहेज़ की शादी तय हो जायेगी
माँयें :
रिपोर्ट बताती है
कई पीढ़ियों से वे बिना टीवी वाले घर में
सिर्फ मनोरंजन का साधन हैं
दलित और स्त्री होने की कीमत चुकाकर
कोठे और कोठी के लिए
ख़त्म हो जानी है उनकी गुमनाम जिन्दगी
पिता :
एक अलसाई सुबह में
कंकडबाग तक वह दीवारों पर करेगा रंगरोगन
बिजली के खम्भों पर तार बांधेगा
लोहा गाड़ी चुचुवाते हुए करेगा गाँधी मैदान की सफाई
शाम महुआ माई की शरण में
उतारेगा दिनभर की थकान
पुनः पटना :
आज बिहार दिवस है
उसे बांस बाँधने जाना है