}मुसीबत से उनको रिहाई नहीं है
के जिनको दिलो में समायी नहीं है
मेरा दिल तो है आईने के मुआफ़िक
किसी की भलाई बुराई नहीं है
ग़मों के धुवें की इबारत है दिल पर
उजाले पे कालिख तो आई नहीं है
बिछड़ के मैं रोती हूँ उसके लिए अब
जभी दोनों आँखों में काई नहीं है
वो बहने किसे बांधने जाए राखी
के जिनका कोई जग में भाई नहीं है
बिछड़ के भी दिल पर हुकूमत है उसकी
रिहाई भी मेरी रिहाई नहीं है
सिया मुझको मंजिल मिलेगी यक़ीनन
भवंर में तो किश्ती भी आई नहीं है