मुस्कराओ तुम / कमलकांत सक्सेना
मुस्कराओ तुम
और गाएँ हम
बांसुरी यों प्रीति की बजती रहे!
हो सबेरा, ओंठ की मुस्कान जैसा,
या कहो आषाढ़ सा, मधुमास जैसा,
कुनमुनाओ तुम और छेड़ंे हम
ज़िन्दगी यो गीत की बढ़ती रहे!
बांसुरी यों प्रीति की बजती रहे!
रीतता दिन, काम में, श्रमदान जैसा।
भींगता तन, प्राण में, विश्वास जैसा।
डगमगाओ तुम और साधें हम
हार बिन यों जीत ही पलती रहे।
बांसुरी यों प्रीति की बजती रहे!
मांग में सिंदूर हो वरदान जैसा।
सांझ का शृंगार श्रावण मास जैसा।
सिर नवाओ तुम, पांव देखें हम
वर्तिका यों रीति की बलती रहे!
बांसुरी यों प्रीति की बजती रहे!
हर गई हो ज्योति, तम मनुहार जैसी.
मन लगी हो आग, मेरे प्यार जैसी.
गुनगुनाओ तुम, सांस पी लें हम
रात, दिन यों रात फिर चलती रहे!
बांसुरी, यों प्रीति की बजतीरहे!