भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुस्कराती हुई धनक है वही / बशीर बद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुस्कराती हुई धनक है वही
उस बदन में चमक दमक है वही

अब भी चेहरा चराग़ लगता है
बुझ गया है मगर चमक है वही

वो सरापा दीये के लौ जैसा
मैं हवा हूँ उधर लपक है वही

कोई शीशा ज़रूर टूटा है
गुनगुनाती हुई खनक है वही

प्यार किसका मिला है मिट्टी में
इस चमेली तले महक है वही