भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुस्करा दिए / चंद ताज़ा गुलाब तेरे नाम / शेरजंग गर्ग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रूठे हुए दुलार पर हम मुस्करा दिए,
उनके मधुर प्रहार पर हम मुस्करा दिए,
अब वे बना रहे हैं बिगड़ी हुई-सी बात-
जब आँसुओं के द्वार पर हम मुस्करा दिए।