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मुस्कुराते हैं बस हँसी लिखकर / अनीता सिंह
Kavita Kosh से
मुस्कराते हैं बस हँसी लिखकर
रेत पर छोड़ दी खुशी लिखकर।
रात चुपचाप लौट जाती है
पत्ते पत्ते पे फिर नमी लिखकर।
जुगनुएँ रात को दे आईं हैं
अपने हिस्से की रोशनी लिखकर।
जिनके हिस्से में प्यास आई थी
जाम चूमे हैं तिश्नगी लिखकर।
जी उठेंगे जो मेरे मरने से
उनको आये हैं ज़िन्दगी लिखकर।
अपनी किस्मत की स्याह चादर को
ओढ़ लेते हैं चाँदनी लिखकर।
सबसे बेबस है कौन लिखना था
लौट आये हैं आदमी लिखकर।