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मुस्तक़बिल की आँख / रियाज़ लतीफ़
Kavita Kosh से
मेरे माज़ी की आँख मुस्तक़बिल
और ये मेरा सुबूत
बूँद जो पहले समुंदर थी कभी
ये हवाएँ
जो कभी थी साँसें
और इस पेड़ की तन्हाई
मिरी आवाज़ के पानी में कभी भीगेगी
मिरे माज़ी की आँख मुस्तक़बिल
और ये मेरा सुबूत
वक़्त-ए-ना-पेद से आते जाते
उस की तारीख़ में सो जाऊँगा
मैं अगर था तो मैं हो जाऊँगा