भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुहब्बतों में किसी से न कुछ गिला रखना / अशोक 'मिज़ाज'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुहब्बतों में किसी से न कुछ गिला रखना
सिवा ख़ुदा के किसी का न आसरा रखना

ग़म और ख़ुशी के दऱख्तों में फ़ासला रखना
हमारे प्यार का गुलशन हरा भरा रखना

उजाला करने को दीपक जला लिया दिल में
अब इसकी आँच भी सहने का हौसला रखना

तुम्हारे हाथ से शीशा भी एक टूटा था
हमेशा याद वो छोटा सा हादसा रखना

मिलूँ जो राह में नज़रों को तुम झुका लेना
दुआ सलाम का रिश्ता युँ ही सदा रखना

‘मिजाज’ आज वफ़ा को तेरी ज़रूरत है
जो हो सके तो निभाने का सिलसिला रखना