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मुहब्बत का असर देखो / अर्चना अर्चन
Kavita Kosh से
जहाँ रौशन मेरे चारों तरफ है किस कदर देखो
सुनो जानां, ज़रा अपनी मुहब्बत का असर देखो
दिखेंगे पास तुमको आसमां के चांद तारे भी
कभी महबूब की आंखों में आंखें डालकर देखो
यही तो शर्त थी उसकी नज़र हमसे मिलाने की
कि जब मेरी तरफ देखो दिलो जां हारकर देखो
तिरे रूठे से मुरझाए चमन, वीरान हो बस्ती
बड़ा बेरंग-सा लगने लगे सारा नगर देखो
कहा सौ-सौ दफा मैंने मेरे नज़दीक मत आना
हुआ उसपे हमारी बात का ना कुछ असर देखो
यकीनन दूर जाती है मगर फिर लौट आती है
कहीं ज़्यादा है तुझसे बावफा ये रहगुज़र देखो
हमें सच की तमन्ना है हमें खाहिश उजालों की
न जाने खत्म होगा अब कहाँ अपना सफर देखो