मुहब्बत की बारिश में भीगा हुआ हूँ / नित्यानन्द तुषार

मुहब्बत की बारिश में भीगा हुआ हूँ
तेरे बाद भी तुझमें डूबा हुआ हूँ

हुआ कैसा जादू अचानक ये मुझ पर
तुझे देखते ही मैं तेरा हुआ हूँ

वो इक पल का मिलना बिछड़ना सदा का
ज़रा देख मैं कितना बिखरा हुआ हूँ

तेरी ख़ुशबू से मैं महकता हूँ हर पल
तेरा ख्व़ाब हूँ पर मैं टूटा हुआ हूँ

मुलाक़ात जिस मोड़ पर हो गई थी
अभी भी वहीं पर मैं ठहरा हुआ हूँ

'तुषार' उसका हँसना बहुत याद आए
कोई उससे कह दे मैं उलझा हुआ हूँ

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