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मुहब्बत की मुरव्वत की पुरानी बात रहने दो / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

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मुहब्बत की मुरव्वत की पुरानी बात रहने दो
ये शहर-ए-बेवफ़ा तुम तुम वफ़ा की बात रहने दो

जहाँ तक हो सके आओ चलो हम साथ चलते हैं
मगर तुम उम्र भर की दोस्ती की बात रहने दो

मुझे मालूम है कि ज़िन्दगी की शर्त इतनी है
कि सहरा के सफ़र में तिश्नगी की बात रहने दो

सभी के रास्ते ख़ुदगर्ज़ियों के रास्ते भर हैं
यहाँ पर रहबरों की रहबरी की बात रहने दो

दुआ करिये कहीं वो दुश्मनी तक न चला जाये
इबादत की वफ़ा की दोस्ती की बात रहने दो

यहाँ पर हर किसी की शक़्ल यूँ है आदमी जैसी
मगर सच तो यही है आदमी की बात रहने दो

यहाँ से मैं वहाँ तक चप्पा छान आया हूँ
बियाबाँ ही बियाबाँ है कली की बात रहने दो