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मुहब्बत की राहों में दुनियां खड़ी है / देवी नांगरानी

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मुहब्बत की राहों में दुनियां खड़ी है
हमीं पर हैं नजरें, बड़ी बेबसी है

वहीं आसमां है, जमीं भी वही है
कहीं ऐशो-इशरत, कहीं मुफलिसी है

वही उलझनों में सरों का पटकना
ये जो कशमकश है, यही ज़िन्दगी है

जहाँ बेयक़ीनी के घर ढह गये हैं
भरोसे की दीवार फिर भी बची है

कभी रूह को ग़ौर से सुन तो लेते
यही है इबादत, यही बंदगी है

मेरे साथ इक भीड़ चलती हैं, लेकिन
मुझे मेरी दुनिया अकेली लगी है

तअक़्कुब में क्यों उनके तूफां है ‘देवी’
सफ़ीनों से ऐसी भी क्या दुशमनी है