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मुहब्बत कोई अफ़साना नहीं है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
मुहब्बत कोई अफ़साना नहीं है
यहाँ होता कोई शिकवा नहीं है
बनायेगें वहाँ हम आशियाना
जहाँ सूरज कभी ढलता नहीं है
न देखो इस तरह जानिब हमारी
तुम्हारा प्यार तो धोखा नहीं है
हमारे दर्द की परवा न करना
हमारा जख़्म अब रिसता नहीं है
शबे फुरकत में आहें हैं लबों पर
मगर भीगा कभी तकिया नहीं है
अँधेरे रास्ते दिल को डराते
कहीं कोई दिया जलता नहीं है
बगूले रेत के उड़ते हैं हरसूं
कहीं दिखता मगर साया नहीं है
भरोसे का नहीं दिखता है कोई
यहाँ रिश्ता कोई सच्चा नहीं है
पड़ी मंझधार में कश्ती हमारी
हमें पर नाखुदा मिलता नहीं है