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मुहब्बत बेच डाली है विरासत बेच डाली है / अनिरुद्ध सिन्हा

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मुहब्बत बेच डाली है विरासत बेच डाली है
नई दुनिया के लोगों ने ये दौलत बेच डाली है

हवाओं में बिखरती है कहाँ आने की वो खुशबू
तेरे क़दमों की आहट ने शरारत बेच डाली है

हटा देते हैं पल भर में नज़र से शर्म के परदे
मुहब्बत करनेवालों ने शराफ़त बेच डाली है

सियासत के इशारों पर यहाँ इंसाफ़ होते हैं
हुआ क्या है कि मुंसिफ़ ने अदालत बेच डाली है

वो जिन हाथों में चूड़ी थी लिये हैं हाथ में पत्थर
सुना है हुस्नवालों ने नज़ाकत बेच डाली है