उधर नदी
मुड़-मुड़कर देखती थी
अपनी लम्बाई
और चली गई दूरी
इधर समुद्र
आकाश की छाती से
साध रहा था
अपनी छाती
नदी थक रही थी
चल-चलकर
समुद्र थक रहा था
पड़े-पड़े
उधर नदी
मुड़-मुड़कर देखती थी
अपनी लम्बाई
और चली गई दूरी
इधर समुद्र
आकाश की छाती से
साध रहा था
अपनी छाती
नदी थक रही थी
चल-चलकर
समुद्र थक रहा था
पड़े-पड़े