भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुहाने पर नदी और समुद्र-6 / अष्‍टभुजा शुक्‍ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नदी
ऊपर से नीचे
गिरती रही लगातार
बदलती रही
अपना रूप-स्वरूप
और बहती रही

दिशाहीन रहा समुद्र
समूचा जोर लगाकर
चाह रहा था बहना
लेकिन गरज-तरज कर
रह जाता
अपनी मर्यादाओं में
कौन समझता
उसका कहना और उछलना

नदी, नदी थी
तो समुद्र, समुद्र