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मुहीब रात के गुंजान पानियों से निकल / जावेद अनवर

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मुहीब रात के गुंजान पानियों से निकल
नई सहर के सितारे तू चिमनियों से निकल

हर एक हद से परे अपना बोरिया ले जा
बदी का नाम न ले और नेकियों से निकल

ऐ मेरे मेहर तू उस की छतों पर आख़िर हो
ऐ मेरे माह तू आज उस की खिड़कियों से निकल

निकल के देख तेरी मंुतज़िर क़तार क़तार
अज़ीज़ दान-ए-गंदुम तू बोरियों से निकल

तू मेरी नज़्म के असरार में हुवैदा हो
तू मेरे कश्फ़ की ना-दीदा घाटियों से निकल

ऐ पिछली उम्र इधर सूखी पत्तियों में आ
ऐ अगले साल बुझी मोम-बत्तियों से निकल