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मूँगफली / लक्ष्मी खन्ना सुमन
Kavita Kosh से
जाड़ों की येह मेवा ठहरी
बिकती गली-गली
बादामों की 'मौसी' ठहरी
खस्ता मूँगफली
होले-होले कड़-कड़ बोले
जब वह मुखड़ा खोले
खाई जिसने इक, वह खाता
सारी होले-होले
कम दामों पर मिलती है यह
लो जेबों में डालो
एक-एक कर खाते जाओ
छिलके मगर सँभालो
हरे नमक वाले चटनी की
साथ मिले जब पुड़िया
अंगुल इक से चाटोगे तो
स्वाद लगेगा बढ़िया
गर्मा-गर्म कहाड़ी की ही
मैं लेकर घर आता
दीदी-मम्मी सबको देता
बाँट-बाँट कर खाता