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मूँछें-8 / ध्रुव शुक्ल
Kavita Kosh से
मूँछें अपनी जगह पर कभी नहीं रहतीं
हमें भ्रम होता है कि वे अपनी जगह पर हैं
मूँछें भटक रही हैं शताब्दियों से
अपनी जगह पाने के लिए
वे आगे बढ़ रही हैं
पीछे हट रही हैं
कट रही हैं छँट रही हैं बँट रही हैं
झुका रही हैं झुक रही हैं
छाती पर चढ़कर बेटा
मूँछें खींचता है--
बचो !
मूँछें मौत की निशानी हैं