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मूँछ / हरिऔध
Kavita Kosh से
तो न वह करतूत है करतूत ही।
जो अँधेरे में न उँजियाली रखे।
तो निराली बात उस में न क्या रही।
जो न काली मूँछ मुँह लाली रखे।